October 12, 2025 |
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नेपाल में ‘जेन-जी’ क्रांति: विरोध प्रदर्शन, पीएम का इस्तीफा और एक नई सुबह

नेपाल में 'जेन-जी' क्रांति: भ्रष्टाचार के खिलाफ युवाओं का विद्रोह

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नेपाल में हाल के दिनों में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए, जिसने देश को राजनीतिक उथल-पुथल की स्थिति में ला दिया। यह आंदोलन मुख्य रूप से ‘जेन-जी’ (Gen Z) के नेतृत्व में हुआ, जिसका प्रमुख कारण भ्रष्टाचार, आर्थिक कुप्रबंधन, और सोशल मीडिया पर प्रतिबंध था। यह विरोध किसी धार्मिक या राजनीतिक नेता की व्यक्तिगत टिप्पणी के कारण नहीं था, बल्कि यह आम जनता के गहरे असंतोष का परिणाम था।

नेपाल का राजनीतिक परिदृश्य पिछले कुछ हफ्तों से एक अभूतपूर्व संकट का गवाह रहा है। यह संकट न केवल राजनीतिक है, बल्कि यह दशकों से चली आ रही आर्थिक असमानता, भ्रष्टाचार और शासन के प्रति जनता के गहरे अविश्वास का परिणाम भी है। यह कोई आम विरोध प्रदर्शन नहीं था, बल्कि यह एक शांत, फिर भी शक्तिशाली, ‘जेन-जी’ (Gen Z) पीढ़ी की क्रांति थी, जिसने देश को उसके सबसे गहरे राजनीतिक संकटों में से एक में धकेल दिया।

यह क्रांति किसी एक घटना या राजनीतिक बयान के कारण नहीं भड़की। इसका आधार तो कई वर्षों से जमा हो रहे जनता के आक्रोश में था, जिसे अचानक चिंगारी मिल गई।

नेपाल में विरोध प्रदर्शनों की शुरुआत का तात्कालिक कारण सरकार द्वारा सोशल मीडिया पर लगाए गए कड़े प्रतिबंध थे। सरकार का दावा था कि ये प्रतिबंध “गलत सूचना” और “भड़काऊ सामग्री” पर रोक लगाने के लिए आवश्यक थे, लेकिन युवाओं ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक सीधा हमला माना। यह कदम उस पीढ़ी के लिए असहनीय था जो सूचना और विचारों के मुक्त प्रवाह को अपना मूल अधिकार मानती है।

लेकिन यह केवल एक छोटी सी चिंगारी थी। इस आग के पीछे वर्षों का ईंधन जमा था।

  • भ्रष्टाचार: नेपाल में हर स्तर पर फैला भ्रष्टाचार जनता के गुस्से का सबसे बड़ा कारण था। सरकारी परियोजनाओं में घोटाले, नेताओं की असीमित संपत्ति और आम नागरिकों के लिए न्याय की कमी ने लोगों का धैर्य तोड़ दिया था।
  • आर्थिक कुप्रबंधन: देश की अर्थव्यवस्था बदहाली की स्थिति में थी। बेरोजगारी अपने चरम पर थी, और युवा, जो बेहतर भविष्य की तलाश में थे, निराश हो चुके थे। उन्हें लगा कि उनके भविष्य को राजनीतिक अभिजात वर्ग के स्वार्थों के लिए बलि चढ़ाया जा रहा है।
  • राजनीतिक अस्थिरता: पिछले कुछ वर्षों में सरकारें लगातार बदलती रहीं, जिससे देश के विकास और स्थिरता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। जनता को यह महसूस होने लगा था कि राजनीतिक दल केवल सत्ता के खेल में व्यस्त हैं और उनका देश के प्रति कोई वास्तविक हित नहीं है।

यह विरोध प्रदर्शन किसी राजनीतिक दल द्वारा आयोजित नहीं किए गए थे। यह पूरी तरह से एक जमीनी आंदोलन था, जिसे युवाओं ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे टिकटॉक, फेसबुक और ट्विटर के माध्यम से संगठित किया था। उन्होंने पारंपरिक मीडिया और राजनीतिक संरचनाओं को दरकिनार करते हुए, सीधे जनता से जुड़कर अपनी बात रखी।

प्रमुख घटनाक्रम, हताहतों और संपत्तियों को नुकसान

विरोध प्रदर्शनों की शुरुआत सोशल मीडिया पर प्रतिबंध के बाद हुई, जिसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सीधा हमला माना गया। युवाओं ने इस फैसले का कड़ा विरोध किया और जल्द ही यह आंदोलन पूरे देश में फैल गया।

  • आग के हवाले की गई इमारतें: प्रदर्शनकारियों ने अपने गुस्से को व्यक्त करने के लिए कई महत्वपूर्ण सरकारी और राजनीतिक इमारतों को निशाना बनाया। इनमें संसद भवन, सुप्रीम कोर्ट और तत्कालीन प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली के आवास के साथ-साथ कई मंत्रियों के घर शामिल थे। इन हमलों ने देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था की नींव को हिलाकर रख दिया।
  • हताहतों की संख्या: इस हिंसक प्रदर्शन में पुलिस की गोलीबारी और झड़पों में लगभग 30 लोगों की मौत हुई है और 1,000 से अधिक लोग घायल हुए हैं। हताहतों में प्रदर्शनकारी और सुरक्षाकर्मी दोनों शामिल थे।

जेल से फरार हुए कैदी

देश में फैली अराजकता का फायदा उठाकर कई जेलों से कैदियों ने भागने की कोशिश की। सरकारी सूत्रों के अनुसार, नेपाल की 77 जेलों से फरार हुए कैदियों की लगभग निश्चित संख्या 13,000 है। कुछ रिपोर्टों में यह संख्या 7,000 से 15,000 के बीच बताई गई है। यह एक गंभीर सुरक्षा चुनौती है, क्योंकि इन फरार कैदियों में कई खतरनाक अपराधी भी शामिल हैं।

प्रधानमंत्री का इस्तीफा और नए नेतृत्व की तलाश

लगातार बढ़ते दबाव और हिंसा के बाद, तत्कालीन प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद, नेपाल में एक नए नेतृत्व की तलाश शुरू हो गई है। ‘जेन-जी’ आंदोलन ने एक ऐसे चेहरे का समर्थन किया है, जो पारंपरिक राजनीति से परे है।

  • संभावित महिला प्रधानमंत्री: युवाओं के आंदोलन ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की को अंतरिम सरकार का प्रमुख बनाने का प्रस्ताव दिया है। सुशीला कार्की नेपाल की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश रह चुकी हैं और उनकी छवि एक निष्पक्ष और भ्रष्टाचार-विरोधी नेता के रूप में है।
  • भारत से संबंध (बनारस हिंदू विश्वविद्यालय): सुशीला कार्की ने भारत के प्रतिष्ठित बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU), वाराणसी से राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर (मास्टर्स) की डिग्री प्राप्त की है, जो उन्हें भारत से एक मजबूत शैक्षिक संबंध भी जोड़ता है।
  • अन्य संभावित उम्मीदवार: काठमांडू के मेयर बालेन्द्र शाह (बालेन) को भी एक प्रमुख उम्मीदवार के रूप में देखा जा रहा है। एक रैपर से राजनेता बने बालेन ने युवाओं के बीच अपनी भ्रष्टाचार-विरोधी छवि के कारण काफी लोकप्रियता हासिल की है।
    नेपाल के लिए आगे का रास्ता: चुनौतियाँ और उम्मीदेंइस संकट ने नेपाल की लोकतांत्रिक व्यवस्था की कमजोरियों को उजागर किया है। यह स्पष्ट हो गया है कि जनता अब केवल चुनाव में वोट देकर संतुष्ट नहीं है; वे वास्तविक परिवर्तन चाहते हैं। यदि सुशीला कार्की जैसी एक गैर-राजनीतिक और साफ-सुथरी नेता को सत्ता मिलती है, तो यह नेपाल के लिए एक नया अध्याय हो सकता है। उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा:

    • कानून और व्यवस्था को फिर से स्थापित करना।
    • देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना।
    • जनता का विश्वास फिर से जीतना।
    • एक ऐसी राजनीतिक व्यवस्था का निर्माण करना जो भ्रष्टाचार से मुक्त हो।

    यह ‘जेन-जी’ क्रांति केवल एक घटना नहीं है, बल्कि यह एक चेतावनी है। यह नेपाल के पारंपरिक राजनीतिक वर्ग के लिए एक स्पष्ट संदेश है कि यदि वे नहीं बदलते हैं, तो जनता उन्हें बदलने पर मजबूर कर देगी। यह एक मुश्किल रास्ता है, लेकिन यह एक उम्मीद भी है कि नेपाल एक अधिक पारदर्शी, स्थिर और न्यायपूर्ण भविष्य की ओर बढ़ सकता है।

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