डूसू चुनाव में नया नियम: अब माता-पिता होंगे ‘गारंटर’, क्या इससे बदलेगी दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति?
एक नया अध्याय: डूसू चुनावों में पारदर्शिता की पहल
एक नया अध्याय: डूसू चुनावों में पारदर्शिता की पहल
दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (DUSU) का चुनाव हमेशा से भारतीय छात्र राजनीति का सबसे बड़ा और सबसे चर्चित मंच रहा है। यह केवल छात्रों का चुनाव नहीं होता, बल्कि यह देश के भावी नेताओं की नर्सरी के रूप में भी देखा जाता है। हालांकि, अपनी भव्यता और जोश के साथ, ये चुनाव अक्सर धन-बल, बाहुबल और अनियंत्रित खर्चों को लेकर विवादों में भी रहे हैं। इसी पृष्ठभूमि में, दिल्ली विश्वविद्यालय ने एक ऐतिहासिक और अभूतपूर्व कदम उठाया है, जिसने डूसू चुनावों के नियमों को पूरी तरह से बदल दिया है। विश्वविद्यालय ने एक नया नियम लागू किया है, जिसके तहत चुनाव लड़ने वाले हर उम्मीदवार के माता-पिता को उनका ‘गारंटर’ बनना होगा।
यह नया नियम सिर्फ एक प्रशासनिक बदलाव नहीं है, बल्कि यह छात्र राजनीति को अधिक जवाबदेह और पारदर्शी बनाने की दिशा में एक गंभीर प्रयास है। यह नियम बताता है कि विश्वविद्यालय अब छात्र चुनावों की छवि को सुधारने और उन्हें स्वच्छ बनाने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है। आइए, इस नियम को गहराई से समझते हैं, इसके पीछे के कारणों, छात्र संगठनों की प्रतिक्रिया और इसके संभावित प्रभावों का विश्लेषण करते हैं।
क्या है नया नियम?
विश्वविद्यालय द्वारा जारी किए गए नए दिशानिर्देशों के अनुसार, डूसू चुनाव लड़ने वाले हर उम्मीदवार को एक हलफनामा (affidavit) देना होगा, जिस पर उसके माता-पिता या अभिभावक के हस्ताक्षर होंगे। इस हलफनामे में स्पष्ट रूप से यह घोषणा की जाएगी कि उम्मीदवार चुनाव से जुड़े सभी नियमों और शर्तों का पालन करेगा। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि माता-पिता को इस बात का गारंटर बनना होगा कि उनका बच्चा:
- चुनाव खर्चों की सीमा का पालन करेगा: लिंडोह समिति की सिफारिशों के अनुसार, उम्मीदवारों के खर्चों की एक निश्चित सीमा तय की गई है। माता-पिता को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनका बच्चा इस सीमा का उल्लंघन न करे।
- हिंसा और अनुशासनहीनता में शामिल नहीं होगा: यदि उम्मीदवार चुनाव प्रचार के दौरान किसी भी प्रकार की हिंसा, तोड़-फोड़ या अनुशासनहीनता में शामिल होता है, तो इसके लिए माता-पिता को भी जवाबदेह माना जाएगा।
- अनधिकृत सामग्री का प्रयोग नहीं करेगा: उम्मीदवार प्रचार के लिए किसी भी प्रकार के अवैध पोस्टर, पर्चे या अन्य सामग्री का उपयोग नहीं करेगा।
इस नियम का सार यह है कि अब चुनाव लड़ना केवल उम्मीदवार का व्यक्तिगत फैसला नहीं रहेगा, बल्कि इसमें उसके परिवार की भी सीधी जिम्मेदारी होगी।
नियम क्यों लाया गया: धन-बल और बाहुबल पर अंकुश
इस नियम को लाने के पीछे दिल्ली विश्वविद्यालय का मुख्य उद्देश्य डूसू चुनावों को साफ-सुथरा बनाना है। पिछले कुछ वर्षों में, ये चुनाव अक्सर अपनी नकारात्मक छवि के लिए चर्चा में रहे हैं।
- भारी-भरकम चुनावी खर्च: छात्र संगठनों द्वारा चुनाव में करोड़ों रुपये खर्च करने की खबरें आम रही हैं। बड़े बैनर, पोस्टर, डीजे पार्टियां, और छात्रों को लुभाने के लिए अनैतिक तरीकों का उपयोग किया जाता रहा है। यह नया नियम सीधे तौर पर इस अनियंत्रित खर्च पर लगाम लगाने का प्रयास है।
- हिंसा और अपराध: चुनाव के दौरान मारपीट, धमकी, और परिसर में गुंडागर्दी की घटनाएँ भी सामने आती रही हैं। कई बार आपराधिक पृष्ठभूमि वाले छात्र भी चुनाव में उतरते हैं। माता-पिता को गारंटर बनाने से, विश्वविद्यालय को उम्मीद है कि ऐसे उम्मीदवार पीछे हटेंगे, क्योंकि उनके परिवार भी कानूनी और सामाजिक जवाबदेही के दायरे में आ जाएँगे।
- जवाबदेही सुनिश्चित करना: अब तक, नियमों का उल्लंघन करने पर केवल उम्मीदवार पर कार्रवाई होती थी। नए नियम के तहत, यदि कोई उम्मीदवार नियमों को तोड़ता है, तो उसके माता-पिता को भी जवाब देना होगा। यह एक मनोवैज्ञानिक दबाव बनाएगा कि उम्मीदवार अधिक जिम्मेदारी से व्यवहार करें।
छात्र संगठनों की प्रतिक्रिया और बहस
इस नए नियम को लेकर छात्र संगठनों में मिली-जुली प्रतिक्रिया है।
- भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन (NSUI): NSUI के कुछ सदस्यों ने इस नियम का स्वागत किया है, यह कहते हुए कि यह चुनावों को अधिक पारदर्शी बनाएगा और केवल योग्य और जिम्मेदार उम्मीदवारों को ही आगे आने का मौका देगा। हालांकि, कुछ सदस्यों ने यह भी चिंता जताई है कि यह नियम उन छात्रों के लिए मुश्किल खड़ी कर सकता है, जिनके माता-पिता ग्रामीण या दूरदराज के क्षेत्रों से हैं और जो इन प्रक्रियाओं से परिचित नहीं हैं।
- अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP): ABVP, जो डूसू चुनावों में एक प्रमुख शक्ति है, ने इस नियम पर सतर्क प्रतिक्रिया दी है। कुछ सदस्यों ने इसे ‘सकारात्मक कदम’ बताया है, जबकि कुछ ने चिंता व्यक्त की है कि यह युवा नेताओं की स्वतंत्रता को सीमित कर सकता है। उनका तर्क है कि छात्र राजनीति एक स्वतंत्र मंच है और इसमें पारिवारिक हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।
- वामपंथी छात्र संगठन (AISA): AISA जैसे वामपंथी संगठनों ने इस नियम का विरोध किया है। उनका मानना है कि यह नियम छात्र राजनीति को लोकतांत्रिक बनाने के बजाय, इसे अभिजात्य वर्ग तक सीमित कर सकता है। उनका तर्क है कि गरीब और ग्रामीण पृष्ठभूमि के छात्रों के माता-पिता के लिए इस तरह के कानूनी हलफनामों में शामिल होना मुश्किल होगा, जिससे वे चुनाव लड़ने से वंचित हो सकते हैं।
प्रभाव और विश्लेषण: क्या यह एक क्रांतिकारी कदम है?
इस नए नियम के दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं।
- सकारात्मक प्रभाव:
- बेहतर उम्मीदवार: यह नियम उन उम्मीदवारों को हतोत्साहित कर सकता है जो केवल धन-बल या बाहुबल के दम पर चुनाव लड़ना चाहते हैं।
- स्वच्छ राजनीति: यदि यह नियम प्रभावी ढंग से लागू होता है, तो यह डूसू चुनावों को अधिक स्वच्छ और शांतिपूर्ण बना सकता है।
- नैतिकता की वापसी: यह उम्मीदवारों में जिम्मेदारी की भावना पैदा कर सकता है।
- नकारात्मक प्रभाव:
- अभिजात्यवाद को बढ़ावा: यह नियम उन छात्रों के लिए एक बाधा बन सकता है जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं या जिनके माता-पिता पढ़े-लिखे नहीं हैं।
- स्वतंत्रता का हनन: कुछ लोगों का मानना है कि यह छात्रों की राजनीतिक स्वतंत्रता का हनन है और यह उन्हें स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने से रोकेगा।
यह कदम लिंडोह समिति की सिफारिशों की भावना के अनुरूप है, जिसमें छात्र संघ चुनावों में खर्च और आचरण पर सख्त नियंत्रण रखने की बात कही गई थी।
निष्कर्ष: इरादा नेक, परिणाम अनिश्चित
डूसू चुनाव में माता-पिता को गारंटर बनाने का दिल्ली विश्वविद्यालय का यह फैसला एक साहसिक और दूरदर्शी कदम है। इसका उद्देश्य छात्र राजनीति को उसकी पुरानी गरिमा लौटाना और उसे धन और हिंसा के चंगुल से मुक्त करना है। हालांकि, इस नियम का अंतिम परिणाम तभी पता चलेगा जब यह जमीनी स्तर पर लागू होगा।
यह नियम एक बहस छेड़ता है कि क्या छात्र राजनीति में जवाबदेही बढ़ाने के लिए परिवार को शामिल करना सही है, या यह छात्रों की स्वतंत्रता का हनन है। यह देखना दिलचस्प होगा कि यह नियम किस तरह से डूसू चुनावों के भविष्य को आकार देता है।
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