May 3, 2024 |

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चाणक्य रक्षा संवाद 2023 संपन्न- सहयोगात्मक सुरक्षा के लिए रूपरेखा तैयार करना

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भूमि युद्ध अध्ययन केंद्र (सीएलएडब्ल्यूएस) के सहयोग से भारतीय सेना द्वारा संचालित दो दिवसीय अभूतपूर्व कार्यक्रम, चाणक्य डिफेंस डायलॉग 2023, दक्षिण एशिया और हिन्द प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा चुनौतियों पर व्याख्यान के साथ 4 नवंबर को संपन्न हो गया। नई दिल्ली के मानेकशॉ सेंटर में 3 और 4 नवंबर को छह अलग-अलग सत्रों में आयोजित कार्यक्रम, ‘भारत और हिन्दी-प्रशांत क्षेत्र की सेवा- व्यापक सुरक्षा के लिए सहयोग’ विषय पर केंद्रित था। प्राचीन रणनीतिकार चाणक्य की दूरदर्शिता से प्रेरित इस संवाद में दक्षिण एशियाई और हिन्द-प्रशांत सुरक्षा गतिशीलता, क्षेत्र में सहयोगात्मक सुरक्षा के लिए एक रूपरेखा, उभरती प्रौद्योगिकियों के अनुकूलन पर विशेष बल देने के साथ वैश्विक और क्षेत्रीय सुरक्षा मुद्दों, रक्षा और सुरक्षा, भारतीय रक्षा उद्योग की सहयोगात्मक क्षमता बढ़ाने के स्वरूप और भारत के लिए व्यापक प्रतिरोध हासिल करने के विकल्पों पर महत्वपूर्ण चर्चा हुई।

भारत के माननीय उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने इस समारोह की शोभा बढ़ाई और 3 नवंबर 2023 को एक विशेष भाषण दिया। माननीय उपराष्ट्रपति ने वैश्विक सुरक्षा और शांति के लिए समकालीन चुनौतियों का विश्लेषण करने के लिए इस विचार मंच की अवधारणा के लिए भारतीय सेना को बधाई दी। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि चाणक्य रक्षा संवाद दक्षिण एशिया और हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा चुनौतियों के गहन विश्लेषण के लिए एक उपयुक्त मंच बन जाएगा, जो अंततः क्षेत्र में सामूहिक सुरक्षा समाधान का मार्ग प्रशस्त करेगा।

उन्होंने सतर्क और तैयार रहने के साथ-साथ विचार, सिफारिश, संपर्क, प्रोत्साहन और संवाद के संयोजन से बहुआयामी दृष्टिकोण के माध्यम से शांति प्राप्त करने और बनाए रखने के सर्वोपरि महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने यह भी कहा कि “युद्ध के लिए तैयार रहना शांति का मार्ग है।” श्री धनखड़ ने इस बात पर बल दिया कि एक राष्ट्र की ताकत सबसे प्रभावशाली रक्षा और सुरक्षा है। उन्होंने कहा कि शक्ति से शांति स्थापित की जा सकती है। इसके अलावा, उन्होंने सुरक्षा वातावरण को सुदृढ़ करने में अभिन्न घटकों के रूप में देश की सॉफ्ट पावर और आर्थिक शक्ति का उपयोग करने के महत्व पर प्रकाश डाला।

माननीय उपराष्ट्रपति ने आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स, क्वांटम, सेमी-कंडक्टर, बायोटेक्नोलॉजी, ड्रोन और हाइपरसोनिक जैसी उत्कृष्ट प्रौद्योगिकियों के प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए बल देकर कहा कि “इन डोमेन की क्षमता और महारत भविष्य की रणनीतिक सफलताओं और विफलताओं का निर्धारण करेगी।”

प्रौद्योगिकी के पहलू पर टिप्पणी करते हुए उपराष्ट्रपति महोदय ने यह भी कहा कि प्रौद्योगिकी युद्ध के चरित्र को बदल रही है और ऐसे परिवर्तनों और चुनौतियों से निपटने के लिए अपनी क्षमताओं को लगातार विकसित करने की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी कहा कि अंतरिक्ष, साइबर और विद्युत चुम्बकीय स्पेक्ट्रम में भारत की क्षमताएं भूमि, समुद्र और वायु के पारंपरिक क्षेत्रों की पूरक हैं।
थल सेनाध्यक्ष (सीओएएस) जनरल मनोज पांडेय ने विस्तृत भाषण दिया। थल सेनाध्यक्ष ने उल्लेख किया कि वैश्विक परिदृश्य में अभूतपूर्व मंथन ने घटनाओं और नई प्रवृत्ति रेखाओं की एक श्रृंखला को गति दी है। उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी भू-राजनीति को पहले की तरह संचालित कर रही है और भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के एक नए रणनीतिक क्षेत्र के रूप में उभर रही है।

थल सेनाध्यक्ष ने इस बात पर प्रकाश डाला कि महामारी के दौरान भारत के संकल्प, लचीलेपन और विविध क्षमताओं को कड़ी परीक्षा से गुजरना पड़ा और हमारे देश ने उस कठिन समय का अच्छी तरह से सामना किया। उन्होंने यह भी कहा कि हमारे देश की चुस्त, आसान, उपभोक्ता-संचालित अर्थव्यवस्था ने हमें रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण सामने आई आर्थिक मंदी का सामना करने में सहायता की। उन्होंने कहा कि भारत के पास विश्व मंच पर एक विश्वसनीय आवाज है, जो विशिष्ट है, भारतीय लोकाचार में निहित है और ग्लोबल साउथ की चिंताओं को व्यक्त करने में प्रभावी है।

जनरल मनोज पांडेय ने यह भी उल्लेख किया कि भारत के रक्षा सहयोग को बढ़ाया जा रहा है। भारत के बहुपक्षीय जुड़ाव के प्रयासों में सैन्य कूटनीति के महत्व पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि मित्रवत विदेशी साझेदार देशों के साथ संयुक्त अभ्यास का दायरा और पैमाना बढ़ाया गया है। उन्होंने रक्षा हार्डवेयर में आत्मनिर्भरता हासिल करने के राष्ट्रीय संकल्प को दोहराया, जिसे पुनर्जीवित भारतीय रक्षा उद्योग द्वारा सक्षम किया जा रहा है।

उन्होंने कल्पना व्यक्त करते हुए कहा कि चाणक्य रक्षा संवाद का परिणाम वैश्विक मुद्दों को सुलझाने के लिए सहयोगात्मक प्रयासों को प्रोत्साहन देने और ग्लोबल कॉमन्स की सुरक्षा सुनिश्चित करने के परिप्रेक्ष्य के साथ, भारत के पड़ोस में हिन्द-प्रशांत क्षेत्र के भीतर व्यापक सुरक्षा व्यवस्था को संचालित करना है।

उन्होंने यह भी कहा कि समान विचारधारा वाले देशों के बीच सुरक्षा संबंधी चर्चाएं, जैसे कि यह वार्ता, महत्वपूर्ण हैं क्योंकि भारत उनके साथ लोकतंत्र, मानवाधिकार और कानून के शासन आदि जैसे साझा हितों और मूल्यों को साझा करता है। उन्होंने दोहराया कि भारत का दृष्टिकोण सभी राष्ट्रों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए सम्मान, सभी की समानता, विवादों के शांतिपूर्ण समाधान, बल के उपयोग से बचने और अंतरराष्ट्रीय कानूनों, नियमों और विनियमों के पालन पर बल दिया जाता है।

डॉ. अरविंद विरमानी (नीति आयोग), प्रोफेसर अजय कुमार सूद (भारत सरकार के प्रमुख सुरक्षा सलाहकार), राजदूत वी मिस्री (डिप्टी उप सुरक्षा सलाहकार), श्री विजय के गोखले, राजदूत अशोक के कांथा, एडमिरल सुनील लांबा (सेवानिवृत्त), लेफ्टिनेंट जनरल प्रकाश मेनन (सेवानिवृत्त), लेफ्टिनेंट जनरल सुब्रत साहा (सेवानिवृत्त) और लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हुडा (सेवानिवृत्त)जैसे प्रख्यात वक्ताओं ने अपने विचारों को व्यक्त कर इस संवाद को समृद्ध बनाया है। संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, जापान, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, श्रीलंका, फिलीपींस और नेपाल सहित दुनिया भर के देशों के अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधिमंडलों ने विविध दृष्टिकोण और सहयोगी भावनाओं के साथ चर्चा में योगदान दिया।

श्री विजय के. गोखले ने पहले दिन अपना मुख्य भाषण देते हुए दुनिया में चल रहे बदलावों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि वैश्विक संतुलन अब पश्चिम से पूर्व की ओर स्थानांतरित हो रहा है। उन्होंने सभी को समान रूप से सशक्त बनाने में प्रौद्योगिकी की भूमिका पर भी प्रकाश डाला, जो अब केवल पश्चिम तक सीमित नहीं है। उन्होंने टिप्पणी करते हुए कहा कि भारत को उभरती विश्व व्यवस्था में अग्रणी भूमिका निभाने की आवश्यकता है और इसके लिए भारत को अमेरिका और चीन सहित सभी के साथ मिलकर काम करना होगा।

सत्र I- पड़ोस प्रथम; दक्षिण एशिया पूर्वानुमान: पहले सत्र की अध्यक्षता राजदूत अशोक के. कंथा ने की। लेफ्टिनेंट जनरल राकेश शर्मा (सेवानिवृत्त), राजदूत शमशेर एम. चौधरी (बांग्लादेश), श्री असंगा अबेयागूनासेकेरा (श्रीलंका) और श्री चिरान जंग थापा (नेपाल) ने विचार व्यक्त किए और सत्र के दौरान चर्चा में भाग लिया। चर्चा दक्षिण एशिया में संभावित भविष्य की चुनौतियों और उनसे निपटने के लिए क्षेत्र के भविष्य के तरीकों पर केंद्रित थी। सत्र में भारत-चीन प्रतिस्पर्धा के निहितार्थ और दक्षिण एशिया में भू-आर्थिक विकास संचालक के रूप में भारत की संभावना का विश्लेषण किया गया। इसके अलावा, सत्र में दक्षिण एशिया के शांतिपूर्ण और समृद्ध भविष्य को सक्षम करने के लिए मानव प्रवास, जातीय विभाजन, संसाधन साझाकरण, राजनीतिक उथल-पुथल और जलवायु परिवर्तन जैसे गैर-पारंपरिक और समकालीन सुरक्षा मुद्दों पर भी विचार विमर्श किया गया।

सत्र II-हिन्द-प्रशांत; निर्णायक सीमा: दूसरे सत्र की अध्यक्षता पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल सुनील लांबा (सेवानिवृत्त) ने की। डॉ. ट्रॉय ली ब्राउन (ऑस्ट्रेलिया), वाइस एडमिरल अमरुल्ला ऑक्टेवियन (इंडोनेशिया), सुश्री लिसा कर्टिस (अमेरिका) और श्री सौरभ कुमार (भारत) ने अपने विचार व्यक्त करते हुए चर्चा में भाग लिया, जिसमें हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में बदलती शक्ति की गतिशीलता पर गहराई से चर्चा की गई। एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में भारत की भूमिका, क्षेत्र में चीन के प्रभाव और क्षेत्र के भाग्य को आकार देने में आसियान देशों की महत्वपूर्ण भागीदारी पर बल दिया गया। सुश्री लिसा कर्टिस ने कहा कि हिन्द-प्रशांत बढ़ती प्रतिस्पर्धा का क्षेत्र बनता जा रहा है। इस दिशा में गैर-सैन्य गठबंधन क्वाड के एक सफल बहुपक्षीय संगठन के रूप में उभरने की संभावना है। श्री सौरभ कुमार ने हिन्द-प्रशांत क्षेत्र के लिए भारत के दृष्टिकोण की विशिष्टताओं और भारत द्वारा की गई विभिन्न पहलों पर प्रकाश डाला। उन्होंने समसामयिक चुनौतियों से निपटने के लिए एक शक्तिशाली मंच के रूप में क्वाड के महत्व को रेखांकित किया।

सत्र III- सुरक्षा के लिए सहयोगात्मक साझेदारी: तीसरे सत्र की अध्यक्षता लेफ्टिनेंट जनरल प्रकाश मेनन (सेवानिवृत्त) ने की। इसमें डॉ. सटोरू नागाओ (जापान), सुश्री वाणी साराजू राव (भारत) के अलावा डॉ. आर डी कास्त्रो (फिलीपींस) और डॉ. पाको मिलहेट (फ्रांस) ने भाग लिया। सत्र ने ऐतिहासिक संबंधों से प्रेरणा लेते हुए और वैश्विक स्पेक्ट्रम के भीतर भविष्य के गठबंधनों को पेश करते हुए, विशेष रूप से क्षेत्र के छोटे देशों की सुरक्षा के लिए, साझा हितों के आधार पर बहुपक्षीय सहयोग के महत्व पर बल देते हुए, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में संभावित सुरक्षा गठबंधनों पर प्रकाश डाला। मजबूत भारत-अमेरिका संबंधों पर प्रकाश डालते हुए, सुश्री वाणी एस राव ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) में व्यापार विवादों के निपटारे, उच्च शैक्षणिक संबंधों और बढ़े हुए रक्षा सहयोग पर प्रकाश डाला। उन्होंने यह भी बताया कि यह रक्षा साझेदारी द्विपक्षीय है, क्षेत्रीय नहीं। उन्होंने यह भी टिप्पणी की कि क्वाड एक बहुपक्षीय मंच है जो मानवीय सहायता और आपदा राहत (एचएडीआर), समुद्री सुरक्षा, स्वास्थ्य सुरक्षा आदि सहित सामान्य हितों के मुद्दों का व्यवहारिक समाधान प्रदान करता है।

दूसरे दिन की शुरुआत राजदूत कंवल सिब्बल के विशेष संबोधन से हुई, जिन्होंने मौजूदा वैश्विक मामलों के बीच भारत के लिए विकल्पों के बारे में बात की। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि भारत को बिना किसी बाधा के रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखनी चाहिए और सभी समान विचारधारा वाले देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखने चाहिए।

संवाद के दूसरे दिन का मुख्य भाषण नीति आयोग के डॉ. अरविंद विरमानी ने दिया, जिन्होंने उभरती विश्व व्यवस्था में एक जिम्मेदार शक्ति बनने के भारत के दृष्टिकोण पर प्रकाश डाला। उन्होंने कल्पना की कि 21वीं सदी के मध्य तक भारत एक महान शक्ति का दर्जा प्राप्त कर लेगा जिसमें अमेरिका और चीन महाशक्तियाँ होंगे।

सत्र IV- उभरती प्रौद्योगिकी रक्षा और सुरक्षा को कैसे प्रभावित करती है: चौथे सत्र की अध्यक्षता भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार प्रोफेसर अजय कुमार सूद ने की। सत्र में अंतरिक्ष, साइबर स्पेस, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और बिग डेटा सहित उभरती प्रौद्योगिकियों के महत्वपूर्ण पहलुओं पर बातचीत और चर्चा हुई, जिसमें प्रख्यात वक्ताओं ने डॉ. उमामहेश्वरन आर (मानव अंतरिक्ष उड़ान केंद्र, बैंगलोर के पूर्व निदेशक), प्रोफेसर वी. कामकोटि (आईआईटी मद्रास) और प्रोफेसर मयंक वत्स (आईआईटी जोधपुर) भी सम्मिलित हुए। सत्र के दौरान आगामी वर्षों के लिए एक स्पष्ट तस्वीर बनाने मे सहायता प्रदान करने के लिए रक्षा और सुरक्षा पर नई प्रौद्योगिकियों के उपयोग पर चर्चा की गई। इसमें रक्षा रणनीतियों के साथ नवाचारों को एकीकृत करने के लिए, वैश्विक तकनीकी प्रगति के सामने भारत की रक्षा क्षमताओं और बहु-क्षेत्रीय संघर्षों के लिए तैयारियों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ, विघटनकारी प्रौद्योगिकियों की चुनौतियों और संभावनाओं को शामिल किया गया है।

रक्षा सचिव श्री गिरिधर अरमाने ने अपने संबोधन में रक्षा में आत्मनिर्भरता के महत्व पर प्रकाश डाला। रक्षा कूटनीति के क्षेत्र में भारत की प्रमुख उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए, उन्होंने मित्रवत विदेशी देशों के सैन्य कर्मियों के प्रशिक्षण और द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संयुक्त अभ्यासों में भागीदारी में भारत के योगदान के बारे में बात की। उन्होंने मानवीय सहायता और आपदा राहत (एचएडीआर), तटीय सुरक्षा और समुद्री जागरूकता में योगदान के अलावा हिंद महासागर क्षेत्र में प्रथम प्रतिक्रियाकर्ता होने की भारत की भूमिका के बारे में भी बात की।

सत्र V- सहयोगात्मक क्षमता निर्माण के लिए सहायक के रूप में भारतीय रक्षा उद्योग: पांचवें सत्र की अध्यक्षता लेफ्टिनेंट जनरल सुब्रत साहा (सेवानिवृत्त) ने की, जिसमें ‘नीतिगत पहल’ विषयों पर कमोडोर एपी गोलाया, श्री आरएस भाटिया और श्री आर. शिव कुमार ने ‘उद्योग सहयोग’ और ‘स्टार्ट अप’ के बारे में विचार विमर्श किया। सत्र V का मुख्य निष्कर्ष यह था कि भारत को भारतीय समाधानों के साथ भविष्य के युद्ध जीतने के लिए तैयार रहना चाहिए। चर्चा भारतीय रक्षा उद्योग की क्षमताओं, शक्ति और भविष्य के प्रक्षेप पथ और सहयोगात्मक और व्यक्तिगत क्षमता निर्माण में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका पर केंद्रित थी। इसमें घरेलू और अंतरराष्ट्रीय साझेदारी के माध्यम से भारत की रक्षा क्षमताओं को बढ़ाने में नीतिगत ढांचे, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ), निजी रक्षा क्षेत्रों और सूक्ष्म, लघु और माध्यम उद्यम (एमएसएमई) की भूमिका का विश्लेषण किया गया।

सत्र VI- व्यापक निवारण- भारत का तरीका: छठे और अंतिम सत्र की अध्यक्षता लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हुडा (सेवानिवृत्त) ने की। राजदूत डीबी वेंकटेश वर्मा और कर्नल केपीएम दास (सेवानिवृत्त) ने कूटनीति और प्रौद्योगिकी विषयों पर बातचीत की। सत्र का मुख्य ध्यान व्यापक निवारण के लिए भारत के अनूठे दृष्टिकोण का पता लगाना, इसके दर्शन, व्यावहारिकता और चीन की दृढ़ता और विभिन्न संकटों से प्रभावित क्षेत्रीय आर्थिक मंदी सहित भविष्य के विकास को उजागर करने पर केन्द्रित था।

अपनी समापन टिप्पणी में, थल सेनाध्यक्ष ने विभिन्न सत्रों के दौरान चर्चा किए गए कुछ प्रमुख पहलुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने क्षेत्रीय स्थिरता और साझा समृद्धि को प्रोत्साहन प्रदान करने में भारत की प्रतिबद्धता दोहराई। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि हिन्द-प्रशांत क्षेत्र दुनिया के रणनीतिक महत्व में केंद्रीय बना हुआ है और दोहराया कि इस क्षेत्र में ‘निवारण’ को विफल नहीं होने दिया जाना चाहिए।

उन्होंने सैन्य संतुलन के माध्यम से क्षेत्रीय स्थिरता हासिल करने के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय खतरों से निपटने के लिए समान विचारधारा वाले देशों के बीच सहयोगात्मक सुरक्षा और साझेदारी के महत्व को भी रेखांकित किया। उन्होंने यह भी कहा कि युद्ध के गतिक उपकरणों में भी उल्लेखनीय तकनीकी प्रगति हुई है और संचयी रूप से, युद्ध का स्थान अधिक जटिल, प्रतिस्पर्धी और घातक हो गया है। उन्होंने उल्लेख किया कि विशिष्ट प्रौद्योगिकी अब महाशक्ति केंद्रित नहीं रह गई है।

भारतीय रक्षा उद्योग के बारे में बात करते हुए, उन्होंने उल्लेख किया कि भारत सरकार ने सक्षम नीतियों, रक्षा औद्योगिक गलियारों की स्थापना और कई हितधारकों के सहयोग के माध्यम से उद्योग की प्रगति को सुविधाजनक बनाया है। इससे रक्षा उद्योग को चुनौतियों से निपटने में मदद मिली है और इस दिशा में किए गए प्रयासों के परिणाम सामने आने लगे हैं।

उन्होंने यह भी टिप्पणी की कि व्यापक निवारण सुरक्षा के लिए समग्र दृष्टिकोण के महत्व को पहचानता है और इसमें सैन्य, आर्थिक, राजनयिक, प्रौद्योगिकी और सूचनात्मक तत्व शामिल हैं।

जनरल मनोज पांडे ने अपने भाषण को समाप्त करते हुए कहा कि शांति शक्ति की स्थिति से सुरक्षित है और ताकत समान विचारधारा वाले देशों की एकता से आती है जो अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का सम्मान करते हैं। उन्होंने उल्लेख किया कि सामूहिक और सहयोगी सुरक्षा साझेदारी ही भविष्य का मार्ग है।

कार्यक्रम का समापन थल सेना के उप प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल एमवी सुचिन्द्र कुमार द्वारा सभी वक्ताओं और प्रतिभागियों को धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।

चाणक्य रक्षा संवाद 2023 ने एक ऐसे भविष्य की रूपरेखा तैयार की, जहां चर्चा, विचार और रणनीतियाँ एक सुरक्षित, स्थिर और समृद्ध वैश्विक और क्षेत्रीय वातावरण में विकसित होती हैं। भारत, अपनी समृद्ध विरासत और भविष्यवादी दृष्टि के साथ, क्षेत्र में सामूहिक सुरक्षा और समृद्धि की दिशा में निकट और दूर के देशों के समुदाय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार है।

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