May 3, 2024 |

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कोयला मंत्रालय की प्रगतिगामी नीतियों के आधार पर निजी क्षेत्र को खानों का तेज आबंटन

वाणिज्यिक कोयला खान नीलामी के तहत तीन वर्षों में 91 खानों की नीलामी

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वर्ष 2014 में 204 कोयला खानों को निरस्त करने के बाद, कोयला खानों की नीलामी एक पारदर्शी प्रणाली के माध्यम से और विभिन्न उपयोगों के मद्देनजर बिजली और गैर-विनियमित क्षेत्रों के लिए की जा रही है।

कैप्टिव कोयला खानों के लिए नीलामी-आधारित व्यवस्था के परिपक्व होने के साथ, और देश के कोयला उत्पादन को बढ़ावा देने तथा आयात निर्भरता को कम करने के इरादे से वर्ष 2020 में वाणिज्यिक खनन के लिए एक सोची-समझी व दूरगामी नीति तैयार की गई थी। इस नीति के तहत, वाणिज्यिक कोयला खनन के सफल कार्यान्वयन और त्वरित निर्णय लेने के लिए, सचिवों की एक अधिकार प्राप्त समिति (ईसीओएस) बनाई गई, जिसमें सचिव (विदेश विभाग), सचिव (कानूनी मामलों के विभाग), सचिव (पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय) और सचिव (कोयला) सदस्य के रूप में शामिल किए गए।

सरकार ने इस समूह को निम्नलिखित मामलों पर निर्णय लेने के लिए अधिकृत किया है :

  1. सीएमएसपी अधिनियम (अनुसूची-II और अनुसूची-III खानों) के तहत खान की संभावित नीलामी के लिए लक्ष्य।
  2. प्रारंभिक उत्पादन और कोयला गैसीकरण या द्रवीकरण के लिए स्वीकृत प्रोत्साहनों की समीक्षा और निर्धारण ।
  3. कोयले के उत्पादन के संबंध में कोयला खानों या भंडारों की अधिकतम संख्या या किसी अन्य मानदंड की सीमा का निर्धारण।
  4. राष्ट्रीय कोयला सूचकांक के परिचालन से संबंधित विषय।
  5. उत्पादन में दिए गए परिस्थितिजन्य अनुकूलता सहित दक्षता मापदंडों में परिवर्तन।
  6. दो चरणों की बोली प्रक्रिया की समीक्षा।
  7. यदि नीलामी किस्तों में खान/खानों का आवंटन नहीं किया जाता है, तो इसे ईसीओएस के समक्ष रखा जाएगा, ताकि राजस्व हिस्सेदारी के न्यूनतम प्रतिशत और अन्य नियमों व शर्तों में उचित कमी की जा सके।
  8. कोयला खान के लिए नीलामी के लगातार दौर के बाद एकल बोली के संदर्भ में खान के आबंटन के बारे में उचित निर्णय;
  9. बाजार स्थितियों में पर्याप्त अधिकतम/न्यूनतम परिवर्तनों को ध्यान में रखते हुए नीलामी की भविष्य की किस्तों के लिए अग्रिम राशि की सीमा को संशोधित करना;
  10. अन्य मामले जो इस समिति को भेजे जा सकते हैं, जिनमें नीलामी पद्धति और उससे संबंधित मामले, कोयले की बिक्री के लिए आबंटित ब्लॉकों के परिचालन के मुद्दे आदि शामिल हैं, लेकिन ये इन्हीं तक सीमित नहीं हैं।

ईसीओएस की अब तक नौ बैठकें हो चुकी हैं और 27 महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं। ईसीओएस द्वारा लिए गए निर्णयों को आगे बढ़ाते हुए, इन निर्णयों को सक्षम प्राधिकार के अनुमोदन से कार्यान्वित किया गया है। इस प्रणाली ने उन मुद्दों पर तेजी से और सोच-समझकर निर्णय लेने में मदद की है, जिनमें अधिक समय लग सकता था।

वाणिज्यिक कोयला खानों की नीलामी शानदार सफलता है। वर्ष 2020 में वाणिज्यिक खनन की पहली नीलामी के बाद से, वाणिज्यिक कोयला खनन के तहत सात किश्तों में तीन साल की छोटी अवधि के दौरान कुल 91 कोयला खानों की सफलतापूर्वक नीलामी की गई है। इन 91 कोयला खानों में से नौ खानों को मंजूरी मिल चुकी है। पांच कोयला खानों में उत्पादन शुरू हो गया है। वाणिज्यिक खानों से वित्त वर्ष 2023 के दौरान उत्पादन 72 लाख टन हुआ।

वाणिज्यिक कोयला खानों की नीलामी की कार्यप्रणाली के अनुसार, एक खान के लिए दो से कम तकनीकी रूप से योग्य बोलीकर्ताओं के मामले में, उस खान के लिए नीलामी का पहला प्रयास निरस्त कर दिया जाएगा तथा नीलामी का दूसरा प्रयास सक्षम प्राधिकार के अनुमोदन से शुरू किया जा सकता है। बहरहाल, दूसरे प्रयास में पुन: केवल एक बोलीकर्ता के मामले में खान आबंटन के संबंध में उचित निर्णय के लिए मामले को ईसीओएस को भेजा जाएगा। अब तक, एकल बोली के आधार पर ईसीओएस के अनुमोदन से विभिन्न बोलीकर्ताओं को 11 कोयला खदानों का आबंटन किया गया है। इस नीलामी की पेशकश पारदर्शिता, प्रस्ताव की तर्कसंगतता और खानों की संख्या के आधार पर की जाने के लिये अभीष्ट है। उल्लेखनीय है कि पिछले सात दौर के दौरान बार-बार पेशकश किए जाने के बावजूद बड़ी संख्या में खानों को कोई बोली नहीं मिली।

वाणिज्यिक कोयला खानों की नीलामी शुरू करने का उद्देश्य उद्योगों की कोयले की आवश्यकता को पूरा करने के लिए देश में कोयला उत्पादन में वृद्धि करना था, न कि राजस्व अर्जन, ताकि कोयला उत्पादन में देश आत्मनिर्भर बन सके। इसके अलावा, किसी बोलीकर्ता को किसी विशेष कोयला खान के लिए सफल बोलीकर्ता के रूप में घोषित किए जाने के मामले में, उसे राजस्व हिस्सेदारी के अलावा संबंधित राज्य सरकारों को रॉयल्टी (@14प्रतिशत), डीएमएफ, एनएमईटी, जीएसटी और जीएसटी मुआवजा उपकर (@ 400 रुपये) आदि का भुगतान करना होगा। इसके अलावा, कोयला खनन एक बड़ा पूंजीगत उद्योग है और कोयला खानों के परिचालन पर भारी राशि खर्च की जाती है, जिसके परिणामस्वरूप बाद में देश में विकास और रोजगार सृजन के लिए निधियों का उपयोग किया जाता है।

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